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आपका दौर है, हमारा जमाना आएगा !

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आपका दौर है, हमारा जमाना आएगा ! आज इतिहास उस महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा करता है, जहां सदियों से चली आ रही कुरीतियों और जड़वादी परंपराओं का समापन शुरू हो चुका है। उन लोगों को आज भले ही यह भ्रम हो कि उनके पाखंडी साम्राज्य के सामने हम बौने हैं, लेकिन वे भूल रहे हैं कि समाज ने करवट ले ली है। यह वही समाज है, जिसने शोषण और अन्याय के अंधकार में अनगिनत पीढ़ियों तक घुटन सही, लेकिन अब वह जाग चुका है। अब यह समाज उन पुरानी, भेदभावपूर्ण परंपराओं को ठोकर मारता हुआ आगे बढ़ रहा है। हमारे पुरखों ने जिस संघर्ष की नींव रखी थी, आज हम उसी संघर्ष की मशाल लेकर आगे बढ़ रहे हैं। यह संघर्ष किसी व्यक्ति, वर्ग या समूह के खिलाफ नहीं है, बल्कि उन विचारधाराओं के खिलाफ है, जो मानवता को बाँटने, नीचा दिखाने और अज्ञानता को बढ़ावा देने का कार्य करती हैं। हम प्रगतिशील हैं, वैज्ञानिक सोच में विश्वास रखते हैं, और प्रकृति की वास्तविकता को समझते हुए अपने समाज का पुनर्निर्माण कर रहे हैं। सदियों से जिस व्यवस्था ने हमें गुलामी और दमन की जंजीरों में बांधने की कोशिश की, उसे हम आज तोड़ने के लिए तैयार हैं। वह व्यवस...

हम देहात के निकले बच्चे !

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हम देहात के निकले बच्चे थे I पांचवी तक घर से तख्ती लेकर स्कूल गए थे I स्लेट को जीभ से चाटकर अक्षर मिटाने की हमारी स्थाई आदत थी I कक्षा के तनाव में स्लेटी खाकर हमनें तनाव मिटाया थ...

किस किस का दर्द लिखूं मैं...

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हर साल 26 जनवरी आते ही एक अजब सी खुशी सा अहसास होता है. हर तरफ राष्ट्रीय गीत बजते रहते हैं. स्कूलों में बच्चे रंग-बिरंगे प्रोग्राम पेश करते हैं. हर किसी के हाथ में झंडा होता है. लोग अपने उन मासूम बच्चों के हाथ में भी तिरंगा थमा कर खुद भी खुश होते हैं और उसे भी खुशी का अहसास दिलाते हैं, जो ठीक से तिरंगा को संभाल भी नहीं पाता. कल यह सब देखकर जो खुशी मिली है उसे लफ्जों में बयां नहीं किया जा सकता. हमें आजाद होने का अहसास होता है. हमारे बड़े हमें यह कहानी सुनाते हैं कि किस तरह हमारे बाप-दादाओं ने अंग्रेजों से लड़ाई की,.अपनी जानें गवाईं और न जाने कितने लोगों की कुर्बानी के बाद हमें यह आजादी नसीब हुई है और हम एक आजाद मुल्क में सांस ले रहे हैं. मगर ईमानदारी से देखा जाये तो यह सब चीजें कहने-सुनने में जितनी अच्छी लगती हैं प्रैक्टिकल में उतनी अच्छी नहीं हैं. जरा गौर कीजिये क्या वाकई में हमारा मुल्क आजाद है? क्या यहां हर कोई चैन की सांस ले रहा है? क्या हर किसी की बुनयादी जरूरतें पूरी हो रही हैं? क्या बेगुनाहों के साथ इंसाफ हो रहा है, मजदूरों को उचित मजदूरी मिल रही है, और न जाने ऐसे ही कितने सवाल हैं...

रोहित वेमुला का अंतिम खत...

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गुड मॉर्निंग, आप जब ये पत्र पढ़ रहे होंगे तब मैं नहीं होऊंगा. मुझ पर नाराज़ मत होना. मैं जानता हूं कि आप में से कई लोगों को मेरी परवाह थी, आप लोग मुझसे प्यार करते थे और आपने मेरा ब...

एकलव्यों की शहादत और रोहित वेमुला की शहादत को शत्- शत् नमन्...

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दलित अस्मिता के लंबे संघर्ष और ज्ञान सहित ज्ञान की ऐतिहासिक राजनीति के सन्दर्भ में चार बहुत महत्वपूर्ण प्रतीक हैं जो बहुत गहराई से ध्यान में रखे जाने चाहिए. ये चार प्रतीक चार दिशाओं की तरह हैं जो इस सन्दर्भ विशेष में आज तक उभरी चार आत्यंतिक संभावनाओं को उनकी प्रेरणाओं और सफलताओं असफलताओं के साथ उजागर करते हैं. दलित अस्मिता के संघर्ष के भूत, वर्तमान और भविष्य को इन चार प्रतीकों के आईने में रखकर देखिये आप न सिर्फ कारणों और प्रक्रियाओं को देख पाएंगे बल्कि समाधान को भी देख पाएंगे. ये चार प्रतीक कौनसे है? ये चार प्रतीक ऐतिहासिक क्रम में इस प्रकार हैं: एकलव्य विवेकानन्द, अंबेडकर और हाल ही में उभरे रोहित वेमुला. इन चारों में कुछ हद तक वैचारिक संगति है लेकिन थोड़ी ही दूर चलकर वह संगति भंग हो जाती है और चारों के मार्ग अलग अलग हो जाते हैं. अब कई लोगों को इन चारों में संगति या विसंगति की खोज और इस खोज से निकलने वाले विमर्श से कष्ट हो सकता और वे इस पूरे प्रयास को एक प्रक्षेपण या आरोपण भी कहेंगे. लेकिन इसके बावजूद इस तरह के विमर्श को विकसित करके चर्चा में लाने का समय आ चुका है. इन चार व्यक्तियों मे...

क्या आरक्षण पाने वाले अपने समाज से न्याय करते है?

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मोदी जी की भाजपा सरकार और #RSS ने ज्यो ही आरक्षण समीक्षा की बात कही वैसे ही आरक्षण लाभार्थी ( अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछडा वर्ग ) गहरी नींद से जाग उठे। उन्हे डॉ. अंबेडकर याद आने ल...

सोशल मीडिया का बढता प्रभाव कितना सही कितना गलत

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सोशल मीडिया हमारी जिन्दगी मे इतनी अहमियत हासिल कर चुका है की अब हमारा ज्यादातर वक्त अपने परिवार से ज्यादा सोशल मीडिया पर बितने लगा है हमे सोशल मीडिया पर रोज नई जानकारी मिल...