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Showing posts from January, 2016

किस किस का दर्द लिखूं मैं...

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हर साल 26 जनवरी आते ही एक अजब सी खुशी सा अहसास होता है. हर तरफ राष्ट्रीय गीत बजते रहते हैं. स्कूलों में बच्चे रंग-बिरंगे प्रोग्राम पेश करते हैं. हर किसी के हाथ में झंडा होता है. लोग अपने उन मासूम बच्चों के हाथ में भी तिरंगा थमा कर खुद भी खुश होते हैं और उसे भी खुशी का अहसास दिलाते हैं, जो ठीक से तिरंगा को संभाल भी नहीं पाता. कल यह सब देखकर जो खुशी मिली है उसे लफ्जों में बयां नहीं किया जा सकता. हमें आजाद होने का अहसास होता है. हमारे बड़े हमें यह कहानी सुनाते हैं कि किस तरह हमारे बाप-दादाओं ने अंग्रेजों से लड़ाई की,.अपनी जानें गवाईं और न जाने कितने लोगों की कुर्बानी के बाद हमें यह आजादी नसीब हुई है और हम एक आजाद मुल्क में सांस ले रहे हैं. मगर ईमानदारी से देखा जाये तो यह सब चीजें कहने-सुनने में जितनी अच्छी लगती हैं प्रैक्टिकल में उतनी अच्छी नहीं हैं. जरा गौर कीजिये क्या वाकई में हमारा मुल्क आजाद है? क्या यहां हर कोई चैन की सांस ले रहा है? क्या हर किसी की बुनयादी जरूरतें पूरी हो रही हैं? क्या बेगुनाहों के साथ इंसाफ हो रहा है, मजदूरों को उचित मजदूरी मिल रही है, और न जाने ऐसे ही कितने सवाल हैं...

रोहित वेमुला का अंतिम खत...

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गुड मॉर्निंग, आप जब ये पत्र पढ़ रहे होंगे तब मैं नहीं होऊंगा. मुझ पर नाराज़ मत होना. मैं जानता हूं कि आप में से कई लोगों को मेरी परवाह थी, आप लोग मुझसे प्यार करते थे और आपने मेरा ब...

एकलव्यों की शहादत और रोहित वेमुला की शहादत को शत्- शत् नमन्...

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दलित अस्मिता के लंबे संघर्ष और ज्ञान सहित ज्ञान की ऐतिहासिक राजनीति के सन्दर्भ में चार बहुत महत्वपूर्ण प्रतीक हैं जो बहुत गहराई से ध्यान में रखे जाने चाहिए. ये चार प्रतीक चार दिशाओं की तरह हैं जो इस सन्दर्भ विशेष में आज तक उभरी चार आत्यंतिक संभावनाओं को उनकी प्रेरणाओं और सफलताओं असफलताओं के साथ उजागर करते हैं. दलित अस्मिता के संघर्ष के भूत, वर्तमान और भविष्य को इन चार प्रतीकों के आईने में रखकर देखिये आप न सिर्फ कारणों और प्रक्रियाओं को देख पाएंगे बल्कि समाधान को भी देख पाएंगे. ये चार प्रतीक कौनसे है? ये चार प्रतीक ऐतिहासिक क्रम में इस प्रकार हैं: एकलव्य विवेकानन्द, अंबेडकर और हाल ही में उभरे रोहित वेमुला. इन चारों में कुछ हद तक वैचारिक संगति है लेकिन थोड़ी ही दूर चलकर वह संगति भंग हो जाती है और चारों के मार्ग अलग अलग हो जाते हैं. अब कई लोगों को इन चारों में संगति या विसंगति की खोज और इस खोज से निकलने वाले विमर्श से कष्ट हो सकता और वे इस पूरे प्रयास को एक प्रक्षेपण या आरोपण भी कहेंगे. लेकिन इसके बावजूद इस तरह के विमर्श को विकसित करके चर्चा में लाने का समय आ चुका है. इन चार व्यक्तियों मे...

क्या आरक्षण पाने वाले अपने समाज से न्याय करते है?

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मोदी जी की भाजपा सरकार और #RSS ने ज्यो ही आरक्षण समीक्षा की बात कही वैसे ही आरक्षण लाभार्थी ( अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछडा वर्ग ) गहरी नींद से जाग उठे। उन्हे डॉ. अंबेडकर याद आने ल...

सोशल मीडिया का बढता प्रभाव कितना सही कितना गलत

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सोशल मीडिया हमारी जिन्दगी मे इतनी अहमियत हासिल कर चुका है की अब हमारा ज्यादातर वक्त अपने परिवार से ज्यादा सोशल मीडिया पर बितने लगा है हमे सोशल मीडिया पर रोज नई जानकारी मिल...

आदिवासी अंचल में सांप्रदायिकता की घुसपैठ

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2002 के गुजरात जनसंहार की जाँच के दौरान ही हमें और बाकी देश को पता चला था कि किस तरह गुजरात को हिंदुत्व की प्रयोगशाला बना कर, सांप्रदायिक राजनीति करने वाली ताक़तों ने हिंदू मुसलमानों के बीच पीढि़यों से बने कारोबार, मोहल्ले-पड़ोस, रोज़मर्रा के परस्पर सौहार्द्रपूर्ण संबंधों को खत्म किया। यही नहीं हिंदू जाति-व्यवस्था के पीड़ित दलित और हिंदू सामाजिक व्यवस्था के दायरे के बाहर मौजूद आदिवासी समाज के एक हिस्से को भी मुसलमानों के खि़लाफ़ गोलबंद किया गया। पंचमहल से लेकर अनेक ऐसे इलाकों में जहाँ आदिवासी बहुल आबादी थी, स्थानीय मुस्लिम आबादी के खि़लाफ़ उन्हें भड़काया गया, लालच भी दिया ही गया होगा और क़त्लेआम करने का काम आदिवासियों से करवाया गया। शहरी इलाकों में यही काम दलित समुदाय के लोगों का इस्तेमाल करते हुए करवाया गया। बाद में तमाम जाँच दलों की रिपोर्टमें यह खुलासे हुए। जब नरसंहार के दोषियों को पकड़े जाने की माँग देश-विदेश में उठी, तो इन्हीं दलितों- आदिवासियों को पकड़कर जेलों में ठूंस दिया गया। इस तरह सांप्रदायिकता फैलाने के मुख्य जिम्मेदार आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक अपराधी समाज में खुले तौर पर ...

केवल इन लोगों को दीजिए नये साल की शुभकामनाएं, दुआएं देंगे ये लोग..!

नव वर्ष मुबारक हो उन्हें, जिन्हें नये कैलेण्डर की तारीखों में कुछ नयापन लगे। मैं तो 2015 के कट जाने की शुभकामनाएं देना और लेना चाहता हूं। ऐसा नहीं है की 2015 से मेरा कोई विशेष लगाव ह...