किस किस का दर्द लिखूं मैं...

हर साल 26 जनवरी आते ही एक अजब सी खुशी सा अहसास होता है. हर तरफ राष्ट्रीय गीत बजते रहते हैं. स्कूलों में बच्चे रंग-बिरंगे प्रोग्राम पेश करते हैं. हर किसी के हाथ में झंडा होता है. लोग अपने उन मासूम बच्चों के हाथ में भी तिरंगा थमा कर खुद भी खुश होते हैं और उसे भी खुशी का अहसास दिलाते हैं, जो ठीक से तिरंगा को संभाल भी नहीं पाता. कल यह सब देखकर जो खुशी मिली है उसे लफ्जों में बयां नहीं किया जा सकता. हमें आजाद होने का अहसास होता है. हमारे बड़े हमें यह कहानी सुनाते हैं कि किस तरह हमारे बाप-दादाओं ने अंग्रेजों से लड़ाई की,.अपनी जानें गवाईं और न जाने कितने लोगों की कुर्बानी के बाद हमें यह आजादी नसीब हुई है और हम एक आजाद मुल्क में सांस ले रहे हैं. मगर ईमानदारी से देखा जाये तो यह सब चीजें कहने-सुनने में जितनी अच्छी लगती हैं प्रैक्टिकल में उतनी अच्छी नहीं हैं. जरा गौर कीजिये क्या वाकई में हमारा मुल्क आजाद है? क्या यहां हर कोई चैन की सांस ले रहा है? क्या हर किसी की बुनयादी जरूरतें पूरी हो रही हैं? क्या बेगुनाहों के साथ इंसाफ हो रहा है, मजदूरों को उचित मजदूरी मिल रही है, और न जाने ऐसे ही कितने सवाल हैं...